सम्राट अशोक पर निबंध | Samrat Ashok Essay In Hindi | 250-500 Words

Samrat Ashok Essay In Hind

200-250 Words

सम्राट अशोक भारत के इतिहास के महानतम शासकों में से एक थे। उनका जन्म 304 ईसा पूर्व में हुआ था और वे मौर्य वंश के तीसरे सम्राट थे। अशोक ने लगभग 268 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक शासन किया। उनके शासनकाल को भारतीय इतिहास में स्वर्णिम युग माना जाता है।

अशोक ने कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व) के बाद बौद्ध धर्म अपनाया और अहिंसा तथा धर्म प्रचार को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। उन्होंने धर्म के प्रचार के लिए पूरे एशिया में अनेक दूत भेजे। उनके शिलालेख और स्तंभ आज भी उनके विचारों और नीतियों की गवाही देते हैं। अशोक के धर्म स्तंभों पर उत्कीर्ण लेख नैतिकता, सहिष्णुता और मानवता के संदेश देते हैं।

सम्राट अशोक ने जनकल्याण के लिए अनेक कार्य किए, जैसे अस्पतालों का निर्माण, पशु चिकित्सालयों की स्थापना, और सड़कों का विकास। उनका शासन प्रजा के हित में था और उन्होंने सभी धर्मों के प्रति समानता का भाव रखा।

सम्राट अशोक का जीवन और उनके कार्य आज भी हमें नैतिकता, शांति और मानवता का संदेश देते हैं। उनका योगदान भारतीय इतिहास और संस्कृति में अमर है।

500 Words

सम्राट अशोक: महान शासक और धर्म प्रचारक

सम्राट अशोक भारतीय इतिहास के सबसे महान और प्रभावशाली शासकों में से एक थे। उनका जन्म 304 ईसा पूर्व में हुआ था और वे मौर्य वंश के तीसरे सम्राट थे। उनके दादा चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी, जो भारत के इतिहास में एक विशाल और शक्तिशाली साम्राज्य था। अशोक ने लगभग 268 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक शासन किया और अपने शासनकाल में उन्होंने न केवल साम्राज्य का विस्तार किया, बल्कि मानवता और धर्म के प्रचार में भी अद्वितीय योगदान दिया।

कलिंग युद्ध और अशोक का परिवर्तन

सम्राट अशोक के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व) था। कलिंग (वर्तमान ओडिशा) के विरुद्ध लड़े गए इस युद्ध में भारी रक्तपात हुआ और लाखों लोग मारे गए। युद्ध के बाद अशोक ने जब युद्ध की विभीषिका देखी, तो उनका हृदय परिवर्तन हो गया। उन्होंने हिंसा का मार्ग छोड़कर अहिंसा और बौद्ध धर्म को अपना लिया। इसके बाद उन्होंने युद्ध नीति को त्याग दिया और धर्म विजय (धर्म के माध्यम से जीत) को अपनाया।

धर्म प्रचार और शिलालेख

अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अनेक कदम उठाए। उन्होंने अपने साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों में शिलालेख और स्तंभ स्थापित किए, जिन पर धर्म, नैतिकता और मानवता के संदेश उत्कीर्ण थे। इन शिलालेखों में उन्होंने लोगों को सत्य, अहिंसा, दया और सहिष्णुता का पालन करने की सीख दी। अशोक के धर्म स्तंभ, जैसे सारनाथ का सिंह स्तंभ, आज भी भारत की गौरवशाली विरासत का प्रतीक हैं।

अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने दूत विदेशों में भी भेजे। उन्होंने श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड और यूनान तक बौद्ध धर्म का संदेश पहुँचाया। इस प्रकार, अशोक ने न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में बौद्ध धर्म के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जनकल्याण के कार्य

सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में जनकल्याण के लिए अनेक कार्य किए। उन्होंने अस्पतालों और पशु चिकित्सालयों की स्थापना की, जहाँ मनुष्यों और जानवरों का इलाज किया जाता था। उन्होंने सड़कों का निर्माण करवाया और वृक्षारोपण को प्रोत्साहित किया। उनके शासन में सिंचाई के लिए नहरों और कुओं का निर्माण हुआ, जिससे कृषि को बढ़ावा मिला।

अशोक ने अपने साम्राज्य में सभी धर्मों के प्रति समानता का भाव रखा। उन्होंने हिंदू, जैन, बौद्ध और अन्य धर्मों के लोगों को समान अधिकार दिए और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया।

अशोक की विरासत

सम्राट अशोक का शासनकाल भारतीय इतिहास में एक स्वर्णिम युग था। उन्होंने न केवल एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया, बल्कि मानवता और नैतिकता के मूल्यों को स्थापित किया। उनके शिलालेख और स्तंभ आज भी उनके विचारों और नीतियों की गवाही देते हैं। अशोक का जीवन और कार्य हमें शांति, अहिंसा और मानवता का संदेश देते हैं।

सम्राट अशोक का योगदान केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्होंने पूरे विश्व को एक नई दिशा दिखाई। उनकी विरासत आज भी हमें प्रेरणा देती है और हमें यह सीख देती है कि शक्ति का उपयोग जनकल्याण और धर्म प्रचार के लिए किया जाना चाहिए। सम्राट अशोक का नाम भारतीय इतिहास में सदैव अमर रहेगा।