- कित्तूर रानी चेनम्मा भारत की पहली महिला योद्धाओं में से एक थीं जिन्होंने अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया था।
- उनका जन्म 23 अक्टूबर 1778 को वर्तमान कर्नाटक राज्य के बेलगावी जिले के काकती गाँव में हुआ था।
- बचपन से ही रानी चेनम्मा ने तलवारबाज़ी, घुड़सवारी और युद्धकला में गहरी रुचि ली और खुद को एक साहसी योद्धा के रूप में तैयार किया।
- उनका विवाह कित्तूर के राजा मल्साराज के साथ हुआ और राजा की मृत्यु के बाद वे कित्तूर की रानी बनीं।
- जब अंग्रेजों ने 'डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स' के तहत कित्तूर राज्य को हथियाने की कोशिश की, तो रानी चेनम्मा ने इसका कड़ा विरोध किया।
- उन्होंने अपने दत्तक पुत्र शिवलिंग को उत्तराधिकारी घोषित किया, जिसे अंग्रेजों ने मानने से इनकार कर दिया।
- 1824 में रानी चेनम्मा ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ा और उन्होंने प्रारंभिक युद्ध में अंग्रेज अधिकारियों को हराकर उन्हें बंदी बना लिया।
- हालांकि बाद में अंग्रेजों की विशाल सेना ने कित्तूर पर आक्रमण कर रानी को बंदी बना लिया और उन्हें बेलहोंगल के किले में नजरबंद कर दिया गया।
- रानी चेनम्मा ने 21 फरवरी 1829 को अंग्रेजों की कैद में ही अंतिम सांस ली, लेकिन उनकी वीरता ने पूरे भारत को प्रेरित किया।
- आज भी रानी चेनम्मा को एक साहसी, स्वाभिमानी और बलिदानी महिला के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ पहले विद्रोह की नींव रखी।
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- रानी चेनम्मा का संघर्ष उस समय शुरू हुआ जब भारत में स्वतंत्रता संग्राम की लहर भी नहीं उठी थी।
- उन्होंने अपने छोटे से राज्य और सीमित संसाधनों के साथ भी अंग्रेजों की ताकतवर सेना का बहादुरी से सामना किया।
- उनकी रणनीति और नेतृत्व कौशल ने यह साबित कर दिया कि नारी शक्ति किसी से कम नहीं होती।
- रानी ने जनता का दिल जीता और अपने राज्यवासियों से गहरा लगाव रखा, जिससे उन्हें पूरे राज्य का समर्थन मिला।
- ब्रिटिश शासन की हड़प नीति ने कई राजाओं को कमजोर किया, लेकिन चेनम्मा ने साहस के साथ इसका विरोध किया।
- उनकी वीरता से प्रेरित होकर दक्षिण भारत में कई अन्य रियासतों ने भी अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई।
- इतिहास में रानी चेनम्मा को झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से पहले अंग्रेजों को चुनौती देने वाली योद्धा के रूप में जाना जाता है।
- उनकी स्मृति में कर्नाटक सरकार ने कई स्मारक, डाक टिकट और शौर्य गीतों की रचना करवाई है।
- हर साल कर्नाटक में 'कित्तूर उत्सव' मनाया जाता है जिसमें रानी की बहादुरी को श्रद्धांजलि दी जाती है।
- रानी चेनम्मा का नाम आज भी नारी शक्ति, देशभक्ति और आत्मबलिदान का प्रतीक बना हुआ है।
- रानी चेनम्मा ने यह साबित किया कि देश की आज़ादी के लिए महिलाओं ने भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया।
- उनका विद्रोह केवल एक राज्य की रक्षा के लिए नहीं था, बल्कि यह विदेशी शासकों के अन्याय के खिलाफ एक बड़ी आवाज थी।
- उन्होंने अपने राज्य की स्वतंत्रता और गौरव के लिए अपनी पूरी ताकत और साहस झोंक दिया।
- अंग्रेजों ने उन्हें झुकाने की हर कोशिश की, लेकिन उन्होंने कभी आत्मसमर्पण नहीं किया।
- उनकी गिरफ्तारी के बावजूद, उनके नेतृत्व और विद्रोह की गूंज लंबे समय तक ब्रिटिश शासन को चुनौती देती रही।
- रानी चेनम्मा के संघर्ष ने आगे चलकर स्वतंत्रता संग्राम में नई चेतना और ऊर्जा भर दी।
- वे भारतीय इतिहास की उन गिनी-चुनी महिलाओं में शामिल हैं जिन्होंने युद्धभूमि में अपना लोहा मनवाया।
- उनकी शौर्यगाथा स्कूलों और पाठ्यपुस्तकों में पढ़ाई जाती है ताकि आने वाली पीढ़ियाँ उनसे प्रेरणा लें।
- उनके जीवन पर कई कविताएँ, कहानियाँ और नाटक भी लिखे गए हैं जो उनकी वीरता को जीवंत रखते हैं।
- आज भी रानी चेनम्मा का नाम सुनते ही देशभक्ति, नारी सशक्तिकरण और अदम्य साहस की भावना जाग उठती है।